ज़िंदगी के दुखों को समेटकर, किस प्रकार मुस्कुराने का प्रयत्न किया जा सकता है, यही इस पुस्तक “मरहम” का सार है। वक्त के साथ घाव बेशक भर जाते हैं मगर उनकी टीस सदा दिल में बरकरार रहती है, यही मरहम में लिखी कहानियों का सच है। 9 कहानियों से अलंकृत इस पुस्तक में विभिन्न-विभिन्न परिस्थितियों पर आधारित कहानियां हैं जिसे बड़े ही संजीदा व प्रभावशाली भाव के साथ कुंकुम चतुर्वेदी जी ने लिखा है। इस पुस्तक का प्रकाशन ऑनलाइन गाथा पब्लिकेशन द्वारा किया गया है। कुंकुम जी द्वारा लिखी मरहम की सभी कहानियां उनके व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित हैं, जिसको उन्होंने कहानी या नाटक के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाया है साथ ही संत्रास के क्षणों में भी जीवन जीने का संदेश दिया है।
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में जन्मी श्रीमती कुंकुम चतुर्वेदी जी, हिंदी साहित्य की शिक्षिका रह चुकी हैं और अब रिटायरमेंट के बाद साहित्य जगत में अपनी लेखनी व कहानियों के ज़रिए अपना योगदान दे रही हैं। पुस्तक लेखन के अलावा कुंकुम जी की रचनाएँ हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, कादम्बिनी, नवनीत, वनिता, वामा, सरवी में भी प्रकाशित होती रहती हैं।
इस पुस्तक का आरंभ पहली कहानी तर्पण से होता है, जो एक ऐसी महिला की कहानी है जिसने दुखों से खुद को उबारने के लिए अपना रुख पूरी तरह से भगवान की ओर कर लिया है। इस आस्था पूर्ण भक्ति का मकसद भगवान से उन सवालों का जवाब पूछना था, जो उसकी ज़िंदगी के सबसे बड़े नासूर थे। इन्हीं सवालों के जवाब में उसने अपना संपूर्ण जीवन प्रभु की आराधना में समर्पित कर दिया। दूसरी कहानी प्रतिदान में एक बहन का अपने भाई के प्रति लगाव व एक औरत की पहले पत्नी और बाद में एक मां के रूप में व्यथा दिखाई गई है, जो दिल को झकझोर कर रख देने वाली है।
कुंकुम जी की कहानियों को लिखने का ये अंदाज़ बेशक मन को भाव विभोर कर जाता है मगर साथ-साथ पाठकों को बांधे भी रखता है। इन कहानियों में कोई बनावटी पन नहीं है बल्कि हर किसी के वास्तविक जीवन में होने वाली घटनाओं का नाट्य रूपांतरण ही है।
मरहम की तीसरी कहानी.. विकल्प, समाज के एक बेहद भद्दे व कटु सत्य पर आधारित है, जिसमें एक बच्ची पूरे समाज से खुद को बचाने की गुहार लगा रही है मगर कोई उसकी मदद को तैयार ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि संघर्षों पर आधारित इन सभी कहानियों का अंत दुखद ही है मगर हालात के साथ समझौता करना व ज़िंदगी जीते रहने का मूल सभी कहानियों में छुपा हुआ है।
नीड़ की छाँव, मुझे बहुत दूर जाना है, वार्धक्य, आखिर कब तक...., टी-सेट की वापसी, मैरिज एनिवर्सरी नामक इन कहानियों में ज़िंदगी के कई स्वरूप देखने व पढ़ने को मिलेंगे। पढ़ते-पढ़ते आप इन कहानियों को अपनी आंखों में बसा लेंगे और किरदारों को देखने लग जाएंगे, कुछ इस प्रकार रचा है कुंकुम जी ने अपनी पुस्तक “मरहम” में दर्द को। हम उम्मीद करते हैं कि आपको भी कुंकुम चतुर्वेदी की कहानियों का संकलन “मरहम” पसंद आएगा।
पुस्तक- मरहम
लेखिका- कुंकुम चतुर्वेदी
प्रकाशन- ऑनलाइन गाथा पब्लिकेशन
मूल्य- 160 रुपये