संघर्ष से सफलता तक : स्वस्थ भारत का सपना : डॉ डीके गुप्ता


Posted February 2, 2022 by felixhospital

गरीब के आगे डॉ डीके गुप्ता ने नहीं टेके घुटने, सरकारी स्कूल में पढ़ने के बाद डॉक्टर बन खड़ा फेलिक्स हॉस्पिटल

 
गरीबी वह है जिसे हम जन्म से जानते हैं। यह गांव के प्रत्येक व्यक्ति के भीतर इतनी गहराई से मौजूद है कि कईयों के सपने शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाते, लेकिन उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के एक छोटे से गांव से निकला एक लड़का न सिर्फ डॉक्टर बना, बल्कि आज फेलिक्स हॉस्पिटल खड़ा करके सैकड़ों लोगों को रोजगार देने की ओर अग्रसर है।

डॉ डीके गुप्ता एवं फेलिक्स हॉस्पिटल आज दिल्ली-एनसीआर में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में एक बड़ा एवं भरोसेमंद नाम है। लेकिन डॉ डीके गुप्ता के सफर में बस कांटे ही कांटे थे और आंखों में बस निरोगी भारत का सपना। डॉ गुप्ता दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के मरीजों को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं। बेहद ही कम समय में उन्होंने फेलिक्स हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले बने अपने मल्टी एवं सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल फेलिक्स के सपने को धरातल पर उतारकर चिकित्सीय सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाया है। वास्तव में फेलिक्स हॉस्पिटल बनने की कहानी किसी बिल्डिंग का ढांचा खड़े होने जैसी नहीं। ये कहानी है कि एक ऐसे युवा डॉक्टर की जिसने बचपन में डाक्टर बनकर लोगों की सेवा करने का सपना देखा था। साधारण परिवार में जन्म लेने वाले धर्मेंद्र कुमार गुप्ता के पिता जिला पंचायत के एक कनिष्ठ कर्मचारी और मां एक प्रारंभिक विद्यालय में शिक्षिका थीं।

गरीबी से घिरे इस परिवार में आश्रय के नाम पर मामूली सी छत भी नहीं थी। रात को सोने के लिए दो खोखों (कियोस्क) के बीच में ही बिस्तर लगाना पड़ता था। लेकिन किसी को क्या पता था कि कियोस्क के बीच रात गुजारने वाला एक बच्चा बाद में चलकर डॉक्टर के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले है। प्रारंभिक शिक्षा एक बेहद छोटे से साधारण स्कूल में हुई। लेकिन धर्मेंद्र की कुछ कर दिखाने की जिद उन्हें हर रोज सात किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाने की प्रेरणा देती थी। संघर्ष से नन्हें धर्मेंद्र ने कभी मुंह नहीं मोड़ा लेकिन नौ वर्ष की अल्पायु में पिता की आकस्मिक मृत्यु ने परिवार को आर्थिक संकट में डाल दिया। पिता अस्थमा, डायबिटीज एवं ह्रदय रोग के मरीज थे। पिता की मृत्यु अल्पायु में ठीक से इलाज न मिलने के कारण हो गई थी| इसके बाद धर्मेंद्र ने ठाना कि बड़े होकर डॉक्टर ही बनना है और अस्वस्थ लोगों की सेवा करनी है। इसके बाद वह अपनी मां के साथ नोएडा आ गए।

हिन्दी मीडियम से की पढ़ाई लेकिन अंग्रेजी को कभी रोड़ा नहीं बनने दिया-

नोएडा आने के बाद उनकी मां को शहर के कई बड़े स्कूल ने धर्मेंद्र के एडमिशन का फार्म यह कहकर लौटा दिया कि हिंदी मीडियम में पढ़ाई करने की वजह से धर्मेंद्र इंग्लिश मीडियम के बच्चों के साथ पढ़ने के काबिल नहीं है। स्कूल के मना करने के बावजूद मां ने हिम्मत नहीं हारी और अपने होनहार का दाखिला एक सरकारी स्कूल में कराया। बचपन के उन तंगी और संघर्ष के दिनों में धर्मेंद्र स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ते और घर के आंगन की खाली जगह में अपना बिस्तर लगाकर सोते। क्योंकि रहने के लिए न कोई अलग से कमरा न कोई अलग से व्यवस्था थी।

नहीं थे फीस भरने के पैसे,इसलिए ऑटो-टेपों चलाने से लेकर पॉपकॉर्न तक बेचा-

धर्मेंद्र ने अपनी पढ़ाई की फीस भरने चलाने के लिए सब कुछ किया। टूरिस्ट स्पॉट पर पॉपकॉर्न बेचे, पार्किंग ठेकेदार से गुजारिश कर दिन में कुछ घंटे का काम किया। ऑटो-टेम्पो चलाया। यहां तक की एक फैक्ट्री में नौकरी भी की। ऐसे न जाने कितने जतन करके अपनी पढ़ाई। अपनी किताबों का खर्चा खुद उठाया।

डाक्टर बनने का सपना-

धर्मेंद्र के लिए एमबीबीएस की सीट हासिल करने तक का ये सफर चुनौतियों से भरा था। क्योंकि 12वीं के बाद एमबीबीएस की परीक्षा पास करने के बाद प्रशासनिक लापरवाही के चलते उनका परीक्षा फर्म गायब हो गया और उनकी एमबीबीएस सीट किसी और को दे दी गई। अठारह साल के धर्मेंद्र ने प्रशासनिक व्यवस्था को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। मुख्यमंत्री एवं अन्य विभागीय मंत्रियों को पूरे घोटाले की शिकायत कर जांच कराई। एक वर्ष इतनी बड़ी प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ लड़कर अपना हक हासिल की। इसके बाद मेरठ के प्रतिष्ठित लाला लाजपत राय स्मारक चिकित्सा महा विद्यालय (मेरठ) में दाखिला लिया। यहीं से शुरू हुआ धर्मेंद्र के डॉ डीके गुप्ता बनने का सफर। यहां पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। विभिन्न गोल्ड मेडल जीते और शिशु रोग विशेषज्ञ बने। इस दौरान डॉ डीके गुप्ता के शोध-पत्र देश-विदेश में खूब छापे गए। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में उनके लेखों की खूब सराहना भी हुई। डॉ डीके गुप्ता कहते हैं कि हर किसी को सपने देखने का अधिकार है। मैं गांव का हूं आगे नहीं बढ़ पाऊंगा या मैं गरीब हूं कैसे ये सब होगा, ये सोचने की बजाय हमें अपनी मेहनत पर भरोसा करना चाहिए। लोग कई बार आपके सपनों पर हंसते है। इन बातों को नजरअंदाज करके सिर्फ मेहनत और दृढ़ संकल्प पर विश्वास रखना चाहिए। इसके बाद गांव से निकला हर होनहार बेटा-बेटी आखिरकार अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाएंगे।

दोस्त को बनाया जीवनसंगनी-

संघर्ष के उन दिनों में एक थी डॉ रश्मि गुप्ता जो स्वभाव से डॉ डीके गुप्ता की तरह साधारण लेकिन बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं। धीरे-धीरे साथ काम करते हुए दोनों को लगने लगा कि वह दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। फिर एक दिन दोनों ने जिंदगी भर के लिए एक दूसरे का हाथ थाम लिया और कुछ दोस्तों, परिजन की मौजूदगी में शादी कर ली। डॉ रश्मि गुप्ता जिनके नाम विभिन्न गोल्ड मेडल है। वर्तमान में दिल्ली-एनसीआर की एक प्रसिद्ध शिशु रोग विशेषज्ञ हैं।

फेलिक्स हॉस्पिटल की स्थापना-

डॉ डीके गुप्ता ने पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली नगर निगम के एक अस्पताल में कुछ वर्ष नौकरी की लेकिन बाद में नौकरी छोड़कर अपनी पत्नी डॉ रश्मि गुप्ता के साथ मिलकर नोएडा में लोन लेकर किराए पर एक नर्सिंग होम आरंभ किया। तभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तीन महीने के अंदर नर्सिंग होम को बंद करना पड़ा। लेकिन डीके गुप्ता ने हार मानना तो सीखा ही नहीं था। कोर्ट के आदेश को चुनौती दी और अंत में कोर्ट के आदेशानुसार नोएडा अथॉरिटी द्वारा स्पेशल स्कीम के तहत हॉस्पिटल की जमीन का आवंटन हुआ। इस दौरान उन्होंने हॉस्पिटल की जमीन आवंटन से लेकर हॉस्पिटल बनाने तक का हर छोटा-बड़ा काम खुद ही किया। सीमित संसाधनों के कारण डॉ डीके गुप्ता को सब कुछ स्वयं ही संभालना था। फिर चाहे वह हॉस्पिटल के निर्माण की देखरेख करनी हो। पैसों के लिए बैंकों के साथ बातचीत करनी हो या फिर हॉस्पिटल के लिए चिकित्सीय उपकरण खरीदने हों।

जमीन के आवंटन से लेकर हॉस्पिटल के उद्घाटन तक 14 माह के रिकॉर्ड समय में उन्होंने जरूरतमंद और वंचित मरीजों के लिए अपने हॉस्पिटल के दरवाजे खोले दिए। एक सपना जिसे डॉ डी के गुप्ता और डॉ रश्मि गुप्ता दोनों ने देखा था, हकीकत में बदल गया। अगस्त 2015 में जब फेलिक्स हॉस्पिटल पूर्णतः परिचालन में आया तो इसने न केवल मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं दीं बल्कि विभिन्न वित्तीय संस्थानों, गुणवत्ता की निगरानी करने वाली संस्थाओं और प्राधिकरणों से सराहना के साथ-साथ ढेरों पुरस्कार भी प्राप्त किए। यह सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। डॉ डीके गुप्ता बताते हैं कि गरीबी अच्छे-अच्छों का सपना तोड़ देती है पर विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने डॉक्टर बनने के बाद गरीबों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के सपने को टूटने नहीं दिया।

सफलता की सीढ़ी दर सीढ़ी

• फिलीपींस में राष्ट्रपति के साथ प्रतिनिधिमंडल में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
• डॉ डीके गुप्ता को ईटी नाउ न्यूज चैनल के द्वारा 2017 में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ एंटरप्रेन्योर का अवार्ड।
• पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन द्वारा डॉ डीके गुप्ता ने यूपी में पहला गोल्ड क्वालिटी सर्टिफिकेट प्राप्त किया।
• फेलिक्स हॉस्पिटल को दुबई में प्राइस वाटर हाउस कूपर्स, एशिया मैगजीन और यूआरएस मीडिया द्वारा दुनिया के सबसे महान ब्रांड और एशिया और जीसीसी के बीच विश्व के सबसे महान लीडर्स के रूप में सम्मानित किया गया।
• फेलिक्स हॉस्पिटल को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जेपी सिंह (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, मातृ एवं बाल कल्याण मंत्री, उत्तर प्रदेश) से प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुआ।
• डॉ डीके गुप्ता को कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर योगदान के लिए एबीपी न्यूज चैनल, दैनिक जागरण अखबार, रोटरी क्लब एवं फिक्की की तरफ से सम्मान मिला।

डॉ डीके गुप्ता और फेलिक्स हॉस्पिटल ने कोरोना महामारी के दौरान समाज की भलाई के लिए निम्नलिखित योगदान दिए-

• फ्री टेलीकंसल्टेशन।
• लगभग तीन लाख लोगों को कोरोना का टीका।
• कोविड मरीजों को फ्री एम्बुलेंस सेवा प्रदान की।
• घर- घर फ्री नर्सिंग एवं मेडिकल सुविधा पहुंचाई।
• लाखों ग्रामीण लोगों की हो चुकी है मुफ्त स्वास्थ्य जांच।
• एक लाख से अधिक डॉक्टर परामर्श एवं टेली कंसल्टेशन।
• फ्रंट लाइन वर्कर को मुफ्त पीपीई किट और कोरोना किट वितर।
• गांवों को गोद लेकर उनको बहुत ही कम कीमत पर इलाज मुहैया करवाना।
• नोएडा में देश के पहले 24X7 ड्राइव-थ्रू कोविड टीकाकरण केंद्र की स्थापना।
• फेलिक्स अस्पताल द्वारा गौतमबुद्धनगर के वासियों के लिए फ्री फुल बॉडी चेकअप।
• पुलिस, सेना और फ्रंट लाइन कार्यकर्ताओं को मुफ्त कोविड टीकाकरण प्रदान किया।
• कोविड रोगियों को फ्री ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और घरेलू देखभाल प्रदान की।
• डॉ डीके गुप्ता द्वारा प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया द्वारा कोविड महामारी के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाया गया।

स्कूलों, गांवों, सोसाइटी और कॉर्पोरेट संगठनों में 1000 से अधिक मुफ्त स्वास्थ्य जांच शिविर, स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, स्वास्थ्य वार्ता और अन्य कल्याण गतिविधियों का आयोजन किया।

फेलिक्स हॉस्पिटल ने कोविड महामारी के दौरान परीक्षण, संपर्क ट्रेसिंग, मेडिकल किट होम डिलीवरी, होम आइसोलेशन, टेली कंसल्टेशन और रोगियों को ऑक्सीजन वितरण और 24X7 आपातकालीन सेवाएं देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ डीके गुप्ता द्वारा लिखी किताब

डॉ डीके गुप्ता फिट इंडिया मूवमेंट के नाम से एक किताब भी लिख चुके है। जिसमें स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम और एक्सरसाइज के महत्व को बताया गया है। इसमें 50 हेल्थ सीक्रेट बताए गए हैं। जिससे हम खुद को स्वस्थ रख सकते है।

सफलता के लिए डॉ डीके गुप्ता का मंत्र है

-जिंदगी जिंदादिली का नाम है, बुजदिल क्या खाक जिया करते है।

और जानने के लिए वेबसाइट पर क्लिक करे : https://felixhospital.com/
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Issued By Shweta Sharma
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Last Updated February 2, 2022