आज जो कुछ भी हूं, माता-पिता की बदौलत ही हूं


Posted September 26, 2019 by atulmalikram

जब अपने नाम के पीछे मलिकराम लगाया तो ऐसा लगा कि खुद पिता मेरे पीछे खड़े हो गये हों और मानो मुझसे ये कह रहे हों कि बेटा तू आगे बढ़. उस दिन खुद से एक वादा किया कि इस नाम को कभी झुकने नही दूंगा

 
जब अपने नाम के पीछे मलिकराम लगाया तो ऐसा लगा कि खुद पिता मेरे पीछे खड़े हो गये हों और मानो मुझसे ये कह रहे हों कि बेटा तू आगे बढ़. उस दिन खुद से एक वादा किया कि इस नाम को कभी झुकने नही दूंगा, आखिर कैसे झुकने देता, पिता के नाम को मै. आज जो कुछ भी हूं, माता-पिता की बदौलत ही तो हूं. परसो रोज वृद्धाश्रम गया था, कई बुजुर्गो से मिला, जो मुझमे उनका बेटा तलाश रहे थे, वहां एक माता जी मिली, मुझे देख उनकी आंखे भर आयी. वहां के स्टॉफ ने बताया कि अक्सर बच्चों को याद कर इन बुर्जुगों की आंखें यूं ही छलक उठती हैं. कोई अगर मिलने आता है तो ये बच्चों के समान चहकने लगते हैं. उन बुजुर्गो से प्रश्न किया कि वो किन परिस्थितियों में यहां पहुंचें? लगभग सबका जबाव एक सा ही था कि बेटे की भी मजबूरी रही होगी, खर्च नही उठा रहा पा रहा होगा या उसका अपना भी परिवार है, हमारा खर्च कैसे चला पायेगा, हम यहीं ठीक हैं. 'अपना परिवार' इस शब्द ने मुझे बैचेन सा कर दिया, मै रात भर यही सोचता रहा कि हम कैसा परिवार बना रहे हैं, जिसमें हमारे माता-पिता के लिए ही जगह नही बची! हमारे माता-पिता को ब्रांडेड कपड़ो और जूतों की चाह नहीं है वो हमसे केवल प्यार और थोड़े से सम्मान की उम्मीद रखते हैं, लेकिन कितने अफ़सोस की बात है की हम उन्हें ये भी नहीं दे पा रहे हैं.
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Last Updated September 26, 2019