Rgyan announced mystery of Maa DhariDevi Temple Alaknanda


Posted June 29, 2018 by RgyanIndia

अलकनंदा नदी के तट पर बसी माँ धारी देवी के अनोखे भव्य मंदिर का रहस्य (The mystery of Maa DhariDevi Temple Alaknanda)

 
अलकनंदा नदी के तट पर बसी माँ धारी देवी के अनोखे भव्य मंदिर का रहस्य (The mystery of Maa DhariDevi Temple Alaknanda)
उत्तराखंड राज्य प्राचीन काल से सदैव देवों की भूमि के नाम से प्रसिद्ध रहा है। जहां असंख्य साधकों ने अपने तप के बल पर इस धरा को देव लोक बनाया है। अध्यात्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध इस पहाड़ी राज्य की अपनी अलग पहचान है। यहां कई ऐसे धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनका संबंध पौराणिक काल से है। प्राचीन ऋषि परंपरा की जड़ों को थामे उत्तराखंड दुनिया के चुनिदा धार्मिक पर्यटन केंद्रों मे गिना जाता है। यहां दूर-दूर से सैलानी आकर आत्मिक और मानसिक शांति का अनोखा अनुभव प्राप्त करते हैं। वैसे तो उत्तराखंड में अनगिनत छोटे-बड़े मंदिर मौजूद हैं लेकिन आज हम अपने इस लेख के माध्यम से यहां के एक ऐसे मंदिर के बारे में आपको बताएंगे जहां की देवी उत्तराखंड की रक्षक मानी जाती है। वैसे तो आपने उत्तराखंड के कई चमत्कारी मंदिरों और देवी-देवताओं के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको उन देवी के बारे में बताने जा रहे हैं जो कई सालों से पहाड़ों की रक्षा कर रही हैं



बद्रीनाथ राजमार्ग पर स्थित माँ धारी देवी कैसे बनी पहाड़ों की संरक्षक –
धारी देवी मंदिर, देवी काली माता को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के रूप में माना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में अलकनंदा नदी के तट पर श्रीनगर-बद्रीनाथ राजमार्ग पर कल्यासौर में स्थित है। माना जाता है कि राज्य में जितने भी धार्मिक स्थल मौजूद हैं उनकी रक्षा स्वयं माता धारी करती हैं। माता के मंदिर में पूजा पूरे विधि विधान से होती है क्योंकि कोई भी माता के प्रकोप का भागी नहीं बनना चाहता। वैसे आज तक ऐसी स्थित नहीं आई है। उत्तराखंड का यह फल कभी देवताओं को परोसा जाता था ऐतिहासिक मंदिर माता धारी देवी का मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है। माता का सिद्धपीठ उत्तराखंड के श्रीनगर से लगभग 15 किमी की दूरी पर स्थित कलियासौड़ इलाके में अलकनंदा नदी के तट पर बसा है। माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास काफी सालों पुराना है। जानकारों के मुताबिक यहां वर्ष 1807 के साक्ष्य पाएं गए हैं। जबकि यहां के ग्रामीण लोगों और मंदिर के महंत का कहना है कि मंदिर इससे भी कई साल पुराना है प्राचीन मंदिर होने के कारण इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी है। माता धारी देवी के मंदिर में आपको ढेरों घंटियां दिखेंगी। पूजा के समय घंटी की आवाज दूर-दूर तक जाती है, जिसके बाद यहां दर्शनाभिलाषियों का तांता लग जाता है। यहां भक्त आपको माता के जयकारे लगाते हुए दिख जाएंगे। बद्रीनाथ जाने वाले श्रद्धालु यहां रूककर माता के दर्शन अवश्य करते हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार मां धारी देवी का शरीर कालीमठ में स्थित है। कालीमठ रूद्रप्रयाग का एक धार्मिक मठ है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि प्राकृतिक आपदा के दौरान माता का मंदिर पूरी तरह बह गया था, लेकिन एक चट्टान जैसी शिला से सटा मां की प्रतिमा पास के धारों नाम के गांव में बची रही। जिसके बाद गांव वालों को मां की आवाज सुनाई दी। मां ने गांववालों को उसी स्थान पर मंदिर निर्माण का आदेश दिया। मान्यता है कि माता के यहां मत्था टेकने से हर मनोकामनाएं पूरी होती है। और उसे वह मृत्यु के बाद सीधा मोक्ष धाम को प्राप्त होता है।

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Last Updated June 29, 2018